Wednesday 26 October 2016

माँ के लिए वास्तविक और दिखावटी प्रेम

माँ के लिए वास्तविक और दिखावटी प्रेम


कुछ वर्ष पहले बहुत खुश थी वो माँ; जो अपने बच्चों को लोरियां सुनाकर सुला देती थी।
बहुत खुश था वो बच्चा जिसे माँ की लोरियाँ किसी टॉफ़ी से अधिक प्यारी लगती थीं।
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समय गुजरता गया; बच्चा बड़ा होता गया और माँ की लोरियों की जगह television ने ले ली।
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अब वही बच्चा शाम को माँ की लोरियों की जगह; television पर cartoons को देखते-देखते सोने लगा।
अब शायद वो बच्चा माँ की वही लोरियाँ बार-बार सुनकर थक गया था; शायद इसीलिए उसने लोरियों की जगह cartoons को दे दी।
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खैर; समय और गुजरा; बच्चा और भी बड़ा होता गया और फिर television की जगह smartphone ने ले ली।
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अब वही बच्चा शाम को tv पर cartoons की जगह; पिता से मोबाइल लेकर games खेल-खेलकर सोने लगा।
अब शायद वो बच्चा tv पर cartoons देख-देखकर bore हो गया था ; शायद इसीलिए उसने cartoons की जगह games को दे दी।
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खैर; समय और गुजरा और वो बच्चा; अब बच्चा नहीं रहा बल्कि एक बालिग बन गया था और उसके पास खुद का एक smartphone आ गया था।
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फिर उस बच्चे का संपर्क games की दुनियाँ से भी टूटकर; internet से जुड़ा।
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और जब संपर्क internet से जुड़ गया है तो भला social media से कैसे अछूता रहा जा सकता है।
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Social media (facebook+whatsapp) पर उसने अपना account बना लिया और धीरे धीरे वो अपनी माँ से दूर होता गया और उसकी आँखे नए नए लोगों को ढूंढने लगीं।
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उसकी माँ बार-बार उसे खाना खाने के लिए कहती और वो; "बस माँ दो मिनट" कहकर आधा घंटा निकाल देता।
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जो माँ पहले लोरियाँ सुनाकर बहुत खुश होती थी; अब वही माँ ये सोचकर दुःख रहती है कि मेरा बेटा मोबाइल पर आखिर ऐसा क्या करता है जो उसे खाना खाने के लिए भी इन्तजार करना पड़ता है।
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माँ कभी-कभी उससे कहती भी थी कि कुछ और भी कर लिया कर, इस तरह मोबाइल का कीड़ा बनना अच्छी बात नहीं।
लेकिन उस पर माँ की बातों का असर होता ही नहीं था, वो माँ की बातों को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देता था और फिर से अपने कामों (facebook और whatsapp) में busy हो जाता।
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वैसे real में वह माँ के लिए समय भले ही ना निकाल पा रहा हो लेकिन facebook और whatsapp पर माँ के लिए उतना ही बढ़ गया था।
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फिर वो social media पर regular ही माँ के ऊपर बनी post को पढ़ने लगा, like करने लगा और तो और; comments में i love my mom भी लिखने लगा था।
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सच कहें तो वो सिर्फ लिखता ही था, social मीडिया पर जितना प्यार वो माँ के लिए दिखा रहा था ना...!!
reality में अगर वो उसका 50% ही प्यार माँ को देता....तो उसकी माँ के लिए उसका बेटा "मोबाइल का कीड़ा" ना बनता।
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खैर; क्या आप जानते हैं कि ये किस लड़के की कहानी है।
ये किसी और लड़के की नहीं बल्कि मैं सोचता हूँ कि ये हमारी और तुम्हारी ही कहानी है।
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जो अपना अधिकतर समय facebook और whatsapp पर ही बिताते हैं और वहाँ माँ के ऊपर बनी post पर i love my mom का comment भी चिपका देते हैं।
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अरे भाई...facebook पर तो i love my Mom का वो भी comment कर देगा; जो घर पर अपनी माँ से प्यार ना करता हो।
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शायद आज हर माँ के लिए उसका बेटा मोबाइल का कीड़ा बन गया है।
इसीलिए मेरा मानना है कि मोबाइल चलाओ;  लेकिन उतना ही कि आप अपनी माँ की नजरों में उनके बेटे ही रह सको; ना कि एक मोबाइल के कीड़े😏😏..!!!
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So friends, मेरे कहने का मतलब यही है:_
"वास्तविक प्रेम वह नहीं है जो हम माँ के प्रति online (facebook+whatsapp पर) बयाँ करते हैं।"
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"वास्तविक प्रेम तो वो है जब हम offline; माँ के साथ बैठकर उन्हें अपना वास्तविक समय देते हैं।"
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इसलिए जब फुर्सत हुआ करे तब माँ के साथ बैठ लिया करो यारो..!!!
क्या पता कल को हमारे इस तरह online रहने से माँ हमसे रूठ जाये और हम facebook पर फिजूल ही दिखावटी प्रेम और i love my mom के comments करते रहें।
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इस blog में मैंने बहुत सारी कड़वी लेकिन सच्ची बातें लिखी हैं अगर फिर भी किसी की भावनाओं को हमारे शब्दों से चोट पहुँची हो तो मैं माफी मांगता हूं।
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कृपया अपने comments द्वारा बताइये कि ये blog आपको कैसा लगा..???
हो सकता है कि मैंने अपने blog में कुछ गलतियाँ की हों क्योंकि मैं अभी एक नया blogger हूँ।
इसीलिए आपका फर्ज बनता है कि उन गलतियों को अपने comments के जरिये बताएं।
और मुझे; और भी article लिखने के लिए प्रोत्साहित करें।
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जय हिंद।

Sunday 23 October 2016

एक किसान पिता की दुविधा😥

किसान पिता की दुविधा...

काफी पढ़ा लिखा होने के बावजूद भी जब उसे अपने ओहदे ही नौकरी नहीं मिली तो वह घर पर ही अपना समय बिताने लगा...!!!
कहीं वो अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता तो कहीं वो घर पर ही आराम से लेटकर सो जाता।
इसी तरह चल रही थी उसकी जिंदगी।
जबकि उसके पिता एक किसान थे।
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उसे इस तरह जिंदगी जीते देखकर उसके पिता से रहा न गया और उसे एक दिन समझाते हुए बोले कि बेटा इस तरह घर पर रहना कोई अच्छी बात नहीं है।
आपको अगर कोई पढ़ी लिखी नौकरी नहीं मिल रही है तो क्या..!!!
तब तक आप मेरे साथ मेरे काम में हाथ बँटा सकते हो!!!
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बेटे को यह सुनकर ही गुस्सा आ गया और झल्लाते हुए बोला :- आपने इसीलिए पढ़ाया था मुझे..??
ताकि मैं भी आपकी तरह खेती कर सकूँ..??
मैं काफी पढ़ा लिखा हूँ ; अब आप ही बताइए कि मुझे इस तरह खेती-बाड़ी करना शोभा देगा क्या..???
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अनपढ़ पिता, बेटे की ऐसी बातें सुनकर कोई जवाब न दे सका और वहां से चलता बना।
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लेकिन किसान पिता के मन में एक ही दुविधा रहती थी कि मेरा लड़का आखिर इतना पढ़ा लिखा होने के बावजूद भी मेरी भावनाओं को क्यों नहीं समझता है; वो ऐसा क्यों समझता है कि मैं भी उसे एक किसान बनाना चाहता हूँ।
अगर ऐसा होता तो मैं उसे पढ़ाता ही क्यों..???
मैं तो सिर्फ उसे इतना समझाना चाह रहा था कि जब तक उसे उसकी मनपसंद की नौकरी नहीं मिल जाती तब तक वह मेरे साथ; मेरे काम में हाथ बँटाये लेकिन वो तो मेरी बात को हमेशा गलत ले जाता है आखिर यह कब समझेगा मेरी भावनाओं को..??
ऐसा सोचते-सोचते पिता की आँखे आंसुओं से नम हो गईं।
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अचानक ही रास्ते में पिता को उनके मित्र टकरा गए; जब पिता ने उन्हें देखा तो झट से अपने आंसू पोंछ लिए ..!!!
लेकिन इन आंसुओं को पोंछते हुए उनके मित्र ने देख लिया था।
और बोले कि यार..!!! ये आंसू क्यों बहा रहे थे???
पिता (बनने का नाटक करते हुए) :- आंसू...!!! नहीं तो..!!!
मित्र :- देखो..!!! जो है उसे सच सच बता दो कुछ छुपाओ मत...समझे!!!
इस पर पिता ने सब बातें अपने मित्र को बता देना ही उचित समझा।
और अपने बेटे की सारी कहानी कह सुनाई।
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ये सब सुनकर उनके मित्र भी काफी भावुक हो गए; और उन्होंने कहा :- तुम चिंता मत करो ; आपके बेटे को मैं समझा दूंगा।
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दूसरे दिन वो मित्र ; अपने मित्र (पिता) के घर पहुंचे।
वहां पर वो लड़का उस वक़्त खाना खा रहा था।
खाना खाने के बाद लड़के ने उनके पैर छुए और बोला कि अंकल!! आज कैसे आना हुआ..???
कोई खाश बात???
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अंकल(मित्र) :- कुछ नहीं!!! बस इधर से निकल रहा था कि सोचा कि आपके हाल -चाल पूछता चलूँ!!! और क्या कर रहे हो आजकल???
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लड़का :- कुछ कर ही तो नहीं रहा..!!! बस किसी नौकरी की तलाश में ही हूँ।
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अंकल :- अरे जब तक नौकरी नहीं मिलती तब तक आप कुछ और काम कर लो..!!!
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लड़का :- कुछ और काम..!!! जैसे कि..???
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अंकल :- जैसे कि आप अपने पिता के साथ खेती में उनका हाथ बँटा सकते हो या फिर मेरे साथ कपड़ों की बिक्री करवा सकते हो!!!
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लड़का (खिशियाहट भरी मुस्कान के साथ) :- अंकल इतना पढ़ा लिखा हूँ और आप मुझे ये कैसा काम करने के लिए कह रहे हो??
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अंकल :- बेटा मैं जिंदगी भर ये काम करने के लिए थोड़े ही कह रहा मैं सिर्फ तब तक कह रहा हूँ जब तक कि आपको अपनी मनपसंद की नौकरी नहीं मिल जाती।
और वैसे भी आप घर पर रहकर क्या करते होंगें...??
या तो फिजूल घूमते होंगे या फिर सोते होंगे..???
इससे तो अच्छा है कि आप कुछ सीखो भले ही वो काम अनपढ़ वाला ही क्यों ना हो।
क्योंकि आज जो काम आपके पिता और हम कर सकते हैं वो आप नहीं..??
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लड़के को उनकी बात जँच गई और वह दूसरे ही दिन पिता के साथ उनका हाथ बँटाने को तैयार हो गया।
ये सब देखकर पिता की आँखे खुशी से दमक उठीं थीं इसलिए नहीं कि अब उनका बेटा उनके साथ खेती करेगा बल्कि इसलिए कि अब उनका बेटा उनकी भावनाओं को समझ गया था।
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Friends, अक्सर ऐसा हम भी करते हैं, जब हम अधिक पढ़ लिख जाते हैं और कोई अच्छी नौकरी नहीं मिलती तो घर पर फिजूल ही पिता की कमाई की रोटियां तोड़ते रहते हैं जबकि हमको करना ये चाहिए कि अगर हमें कोई मनपसंद job नहीं मिल रही है तो तब तक वो job करनी चाहिए जो हमें मिल रही है।
ना ना ना..!! जिंदगी भर नहीं.....सिर्फ तब तक; जब तक कि हमें हमारी मनपसंद job नहीं मिल जाती।
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अगर आपको यह blog पसंद आया हो तो comment करना ना भूलें।
शायद आपको नहीं पता कि एक blogger को आपका positive comment कितनी ख़ुशी देता है।
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जय हिंद।

इन्हें भी पढ़ें :-
1.मेरे सुधरने से क्या; दुनियाँ सुधर जाएगी...!!
2.एक माँ की परेशानी...
3.जरा सोचें - एक अनकही कहानी
4.जरा सोचें...!!! क्यों हम अच्छी बातों को follow नहीं कर पाते..??

Sunday 16 October 2016

One step ahead

एक कदम आगे...

कौटिल्य को आज कौन नहीं जानता..???
एक ऐसा बच्चा जिसे आज देश-दुनियाँ के सभी नाम याद हैं और computer जैसा दिमाग है।
Atleast एक छोटा बच्चा और इतना active कैसे हो सकता है..??
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ये सवाल हर किसी के जेहन में आता है..??
और आना भी चाहिए क्योंकि ऐसा सुनना और देखना हमें असंभव सा लगता है; कुदरत का करिश्मा लगता है!!!
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Budhiya singh born to run : a movie
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अगर आपने ये movie नहीं देखी तो मैं कहना चाहूँगा कि पहले आप इस movie को देखिये और उसके बाद मेरा blog पढ़िए..!!! क्योंकि ये blog भी मैंने उसी movie से inspire होकर बनाया है।
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movie देखने or download करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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इस movie के name पर मत जाइये क्योंकि ये movie इसके name से बहुत अच्छी है!!!
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ये बात मैंने इसलिए बोली क्योंकि अधिकतर लोग movie के name से ही decide कर लेते हैं कि कौन सी movie देखनी चाहिए और कौन सी नहीं..!!! जो कि सरासर गलत है।
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हम किसी भी movie को देखने से पहले; ये भी decide कर लेते हैं कि अगर movie किसी famous actor; like as - सलमान खान, शाहरुख़ खान की हुई तो अच्छी otherwise बेकार।
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कभी कभी famous actor के अभाव में हम एक बहुत ही अच्छी movie (story) देखने से वंचित रह जाते हैं...!!!
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यही वजह है कि हम बुधिया सिंह जैसी movies को ignore कर देते हैं क्योंकि इस movie का ना तो name ही कुछ खाश है और ना ही इसमें कोई खाश actor है।
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but i think; ये movie आपको देखनी चाहिए क्योंकि ये सिर्फ एक movie नहीं है बल्कि ये एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है और इसमें किसी के talent को बड़ी ही अच्छी तरह से दिखाया गया है!!
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जी हाँ, एक बच्चे बुधिया सिंह का talent...!!!
बुधिया सिंह मात्र 5 वर्ष का है और वह बिना रुके, बिना पानी पिए 65km तक मैराथन कर लेता है...!!!
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अगर बुधिया सिंह का coach (मनोज वाजपेयी) उसे एक बच्चा समझकर दौड़ने के लिए मना कर देता तो हमें उसके talent का कभी पता ही नहीं चलता कि कोई बच्चा non-stop 65km तक भी दौड़ सकता है।
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खैर, ऐसे तमाम उदाहरण हैं जिनमें छोटे उस्तादों ने ही बड़ा काम कर दिखाया है और दुनियाँ में अपनी एक नई पहचान कायम की है।
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कभी-कभी हम बच्चों के बारे में कहते हैं कि अभी तो वो बहुत छोटा है, उम्र के साथ सब सीख जाएगा...!!
ठीक इसी जगह हम गलती कर बैठते हैं और बच्चों को बचपन में ही उनके talent से रूबरू नहीं करवाते..!!!
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अगर किसी बच्चे में बचपन से ही कुछ सीखने की ललक है तो उस ललक को हमें उस बच्चे की उम्र पर नहीं छोड़ देना चाहिए कि अभी तो बहुत time है सब सीख जाएगा बल्कि उसे उसी समय उसकी ताकत से रूबरू करवाना चाहिए, उसका हौंसला बढ़ाना चाहिए और छोटी उम्र में ही उसे बड़ा उस्ताद बना देना चाहिए..!!!
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बच्चा ही क्यों..???
अगर आप भी सोचते हैं कि अभी तो काफी समय पड़ा है फिर कर लेंगें..!!!
तो यही आपकी गलत सोच है; क्योंकि आज की प्रतियोगी दुनियाँ में समय ही तो नहीं है..!!!
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अगर आप सोचते हैं कि मैं तो अपनी उम्र के हिसाब से पर्याप्त जानता हूँ तो ये सोच भी ठीक नहीं है..!!
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क्योंकि ठीक ऐसा ही अगर असुरों के गुरू शुक्राचार्य भी सोच लेते तो शायद वो सिर्फ 6 वर्ष की उम्र में ही अपने गुरू से अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते।
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अगर एक छोटा बच्चा आपको कोई suggestion देता है तो आपको उसके suggestion को भी ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए क्योंकि हो सकता है कि उसे भी छोटी उम्र में ही शुक्राचार्य जितना ज्ञान प्राप्त हो गया हो..!!!
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friends, मेरे कहने का मतलब यही है कि अगर आप चाहते हैं कि आप अपनी छोटी उम्र में ही अपने senior को मात दे दें तो आपको उम्र का इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि जितना हो सके उतना सीखने की कोशिश करते रहना चाहिए;
क्योंकि...
"उम्र के साथ तो हर कोई सीखता है लेकिन जो उम्र से पहले सीखे वही महान होता है।"
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I think, इसका moral लिखने की मुझे जरुरत नहीं है क्योंकि आप समझ ही गए होंगे कि इस छोटे से blog में कितने moral छिपे हुए हैं...!!!
जरुरत है तो सिर्फ इन moral पर अमल करने की।
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अगर आपको यह post अच्छी लगी हो तो कृपया share या comment करना ना भूलें क्योंकि आपका एक comment हमें और भी blog लिखने के लिए प्रेरित करेगा।
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जय हिन्द।

Saturday 8 October 2016

जरा सोचें...!!! क्यों हम अच्छी बातों को follow नहीं कर पाते..??

जरा सोचें...!!!

क्यों हम अच्छी बातों को follow नहीं कर पाते..??


story 01...
किसी एक बात पर ही अपना concentrate करें...

जिसने भी लिखा है...!!!
उसने क्या खूब लिखा है:-

         "रोज status बदलने से जिंदगी नहीं बदलती;                  जिन्दगी को बदलने के लिए सिर्फ एक status                    काफी है।"
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In fact, जब किसी बच्चे को उसका teacher ज्यादा homework (10 page) दे देता है तो फिर या तो वह बच्चा कम homework कर पाता है या फिर homework ही नहीं करता है।
अगर उसका teacher उसे कम homework (2-4 page) ही दे तो वह बच्चा उस homework को अच्छे से करता है और उस homework पर concentrate भी करता है।
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ठीक ऐसा ही हमारे साथ भी होता है जब इन्टरनेट पर उपस्थित सभी अच्छी post को हम पढ़ते जाते हैं; पढ़ते जाते हैं और जब follow करने की बारी आती है तब या तो हम उन post को कम follow करते हैं या फिर follow ही नहीं करते हैं।
अगर हम सिर्फ एक अच्छी post को पढ़ें और जिन्दगी भर उसे follow करें तब देखो सिर्फ वही post हमारी जिन्दगी बदल देगी।
क्योंकि फिर हम उस post को अच्छे से follow करते हैं और उस post पर अपना पूरा concentrate भी करते हैं।
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मेरा मतलब रोज अच्छी post पढ़ने से जिन्दगी change नहीं होगी; जिन्दगी change करने के लिए सिर्फ एक post को follow करना ही काफी है।

story 02...
एक motivational post की value...
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क्या आपने कभी सोचा है कि जो कोई भी motivational post या Blog लिखता है वो कितनी मेहनत, कितनी लगन से लिखता है...!!!
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अगर आप इस बात को feel करना चाहते हो तो किसी दिन कोई ऐसी post बनाकर देखो जिसे पढ़कर लोग उस post के बारे में सोचने को मजबूर हो जाएँ और आपको ऐसी post बनाने के लिए; दिल से thanks बोलें।
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अगर आप कोई ऐसी effective और heart touching post बनाओगे तो उसे बनाने में आपको 3-4 घंटे लग जायेंगे और जब उस post को आप prepare करके किसी को पढ़ाओगे तो वो सिर्फ 5 मिनट में पूरी पोस्ट पढ़कर इति श्री कर देगा।
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अगर पूरी post पढ़ने के बाद कहीं उस व्यक्ति ने आपकी post को बकवास बता दिया तब आपको feel होगा कि वाकई ही कोई blog या motivational post बनाना; कितना मुश्किल कार्य (hard work) है।
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इन्टरनेट से कोई भी एक motivational post choose करो।
और उसे सरसरी निगाहों से नहीं बल्कि दिल से पढो..!!!
जब आप उस post को पूरा पढ़ लो तब उसके बारे में सोचो...???
आपको सोचने पर पता चल जायेगा कि किस तरह लिखने वाले ने उसमें अपने सारे emotions, experiences और feelings को input किया है।
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लिखने वाला; अपनी पूरी ताकत सिर्फ इसी बात में झोंक देता है कि कहीं कोई व्यक्ति उसके blog का गलत मतलब ना निकाल ले, बकवास ना बता दे और उसके लिखे हुए शब्द किसी की भावनाओं को ठेस ना पहुंचा दे।
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इन्टरनेट पर उपस्थित हर एक blog अपने आप में special होता है, उस blog में लिखने वाले के सारे emotions और experiences include रहते हैं।
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अब पता चला कि वाकई ही एक अच्छी और effective post लिखना उतना आसान नहीं है जितना कि लोग समझते हैं।
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story 03...
इसलिए भी नहीं कर पाते हम अच्छी बातों को follow...
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मैंने कहीं पढ़ा था :-
               "लोगों पर सुविचारों का असर इसलिए भी नहीं होता क्योंकि लिखने और पढ़ने वाले दोनों यही समझते हैं कि यह दूसरों के लिए है।"
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अब सोचिये जिसने भी यह thought बनाया होगा उसने कितना सोच-समझकर बनाया होगा।
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लिखने वाला जब पूरा blog लिखकर हमें send करता है तो अच्छा लगने पर हम उसे follow नहीं करते हैं बल्कि उसे किसी दूसरे को share कर देते हैं और समझ लेते हैं कि इस blog को हमने follow कर लिया।
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क्या इसे follow करना कहेंगे..???
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नहीं; इसे सिर्फ खुद का और दूसरों का timepass करना कहेंगे...!!!
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यही कारण है कि हम अच्छी बातों को follow करने से वंचित रह जाते हैं।
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खैर, मैं आपको कोई प्रवचन नहीं दे रहा हूँ।
मैं वही बातें repeat कर रहा हूँ जो आप पहले से जानते हैं लेकिन मानते नहीं।
मैं सिर्फ इतना कहना चाह रहा हूँ कि जब भी social media पर आपको कोई post या blog अच्छा लगे तो उसे सिर्फ share मत कीजिये बल्कि उसे जितना हो सके अपनी life में follow करने की कोशिश करें।
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मेरे हिसाब से आप सिर्फ वही सुविचार लोगों को share कीजिये जिसे follow करने की आप हिम्मत रखते हों।
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अगर आप अपने किसी करीबी या दोस्त को ऐसा सुविचार share करते हो जो आप खुद follow नहीं करते तो बदले में वो आपसे बोल सकते हैं कि पहले खुद ही अच्छे बन जाओ; बाद में हमें बनाना।
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तो ऐसे बोलने वाले काम मत करो जिससे लोग आपकी टाँग खींचे। ;)
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i think, मेरे तीनों message आप लोगों तक पहुँच गये होंगे कि मैं क्या कहना चाहता हूँ।
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फिर भी इस blog के तीनों important points; repeat करना चाहूँगा।
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1.रोज अच्छी post पढ़ने से जिंदगी नहीं बदलती; जिन्दगी को बदलने के लिए सिर्फ एक अच्छी post ही काफी है।

2. एक अच्छी और motivational post लिखना भी एक बहुत बड़ी कला है।
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3. आप किसी भी सुविचार को पढ़ने के बाद ये ना समझें कि ये दूसरों के लिए है।
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आशा करता हूँ कि इस blog से आपको कुछ सीखने को मिला होगा।
बाकी इस लेख से अगर आपको कुछ शिकायत हो या कुछ कहना चाहते हो..!!
तो comments अवश्य करें।
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जय हिन्द।

इन्हें भी पढ़ें:-
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Wednesday 5 October 2016

सफलता में बाधा - ईर्ष्या

सफलता में बाधा :- ईर्ष्या

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3 idiot का वह डायलॉग तो शायद आपको याद ही होगा।
जब फरहान और राजू ने human behaviour के बारे में जाना कि "जब दोस्त fail हो जाए तो दुःख होता है लेकिन जब दोस्त first आ जाये तो और ज्यादा दुःख होता है।"
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वैसे उन दोनों की सोच कुछ गलत नहीं थी उन्होंने वही सोचा जो हर कोई सोचता है।
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क्या आपने कभी सोचा है कि जब दोस्त fail हो जाए तो हमें दुःख क्यों होता है...???
हमें वो दुःख इसलिए होता है क्योंकि वो हमसे एक कदम पीछे और अकेला रह जाता है..!!
जिसे हम हमदर्दी भी बोल सकते हैं और इसी हमदर्दी के कारण; दोस्त के fail हो जाने पर; हमें दुःख होता है।
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अब सोचो कि जब दोस्त first आ जाए या top करे तो और ज्यादा दुःख क्यों होता है...???
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसके top करने से वो हमसे 1-2 नहीं बल्कि 10 कदम आगे निकल जाता है और हम पीछे (अकेले) रह जाते हैं।
अब ये और ज्यादा दुःख किसी हमदर्दी के कारण नहीं बल्कि ईर्ष्या(jealousy) के कारण होता है।
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आइये; same यही formula हम 3 idiot पर apply करके देखते हैं...!!!

first attempt में जब फरहान और राजू ने देखा कि list में रेंचो का नाम नहीं है तो उन्हें दुःख हुआ क्योंकि रेंचो के प्रति उन्हें हमदर्दी थी।
लेकिन जब second attempt में देखा कि रेंचो तो first आया है तो उन्हें और ज्यादा दुःख हुआ।
अब यहाँ उनके और ज्यादा दुःख होने की वजह कोई हमदर्दी नहीं बल्कि ईर्ष्या/जलन ही थी।

अब वो तो सिर्फ एक movie थी।
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लेकिन अगर बात reality की; की जाए तो...!!!
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जैसा कि हम जानते हैं जो जलता है; वह फिर खाक भी होता है फिर चाहे वो कोई चीज हो अथवा इंसान।
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चीज खाक हो जाए तो दूसरी खरीदी जा सकती है; लेकिन इंसान नहीं।
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चीज को आग; खाक करती है जबकि इंसान को ईर्ष्या।
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जब तक हमारे अन्दर ईर्ष्या है हम सफल नहीं हो सकते।
यह ईर्ष्या ही हमारी सफलता में बाधा है।
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अब सवाल है कि आखिर यह ईर्ष्या होती क्यों है...???
इसके निम्न कारण हो सकते हैं :-
●आपका दोस्त हर बार exam में आपसे अधिक अंक लाता है।
●आपके दोस्त के पास; आपसे अच्छा mobile या कोई चीज है।
●आपका दोस्त आपसे smart है....आदि।

ईर्ष्या के चलते आप अपने दोस्त से कभी आगे नहीं निकल सकते क्योंकि जब तक आपके पास ईर्ष्या रहेगी आप खुद को अपने दोस्त से कमतर आँकोगे..!!!
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अगर आप चाहते हैं कि आप भी अपने दोस्त या किसी करीबी की तरह सफल हों तो आप उससे ईर्ष्या नहीं करें बल्कि प्रेरणा (inspiration) लें।
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आप ये जानने की कोशिश करें कि वो इतना सफल क्यों है...???
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जब आपको उनके सफल होने का कोई strong reason मिल जाए तो आप भी उसी दिशा में अपने कदम बढ़ाने की कोशिश करें।
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मान लीजिये आपके दोस्त के पास आज laptop है और आपके पास नहीं है तो इस स्थिति में आपको ईर्ष्या feel हो सकती है लेकिन आपको ये नहीं पता कि आपके दोस्त को भी आपसे ईर्ष्या होती है क्योंकि आप study में उससे बहुत अच्छे हो।
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आप उसके laptop को देखकर jealousy feel ना करें बल्कि अपने talent को देखकर खुद पर proud feel करें।
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ईर्ष्या से बचने का सबसे आसान उपाय यही है कि हम अपनी खाशियत/खूबियों को गिनें, स्वयं की ताकत पहिचानें और दूसरों से अपनी तुलना करने से बचें।
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इस तरह ईर्ष्या नामक बाधा को जड़ से मिटाकर हम अपने दोस्त की तरह दुनियां में अपनी पहिचान बना सकते हैं और सफल हो सकते हैं।
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जब आप सफल लोगों से ईर्ष्या करना छोड़ देते हैं और उनसे प्रेरणा लेना start कर देते हैं तभी से आप सफलता की सीढ़ी चढ़ने लगते हैं।
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इस blog को ऐसे ही ignore ना करें जितना हो सके इस पर अमल करने की कोशिश करें। दूसरों से ईर्ष्या करना छोड़ दें और उनसे प्रेरणा लेना सीखें।
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अगर यह blog आपको अच्छा लगा हो तो share और comment करना ना भूलें...!!!
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जय हिन्द।
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इन्हें भी पढ़ें :-
1.Traffic rules
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2.एक महान शब्द :- जागरुकता
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3.इसलिए हैं हम technology के गुलाम
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4.विजेता vs उपविजेता

Tuesday 4 October 2016

The worship of God...

भगवान की आराधना
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आज की दुनियाँ में सभी अपनी मर्जी के मालिक है, सभी स्वतन्त्र हैं, जिसकी जो इच्छा होती है वो वही करता है।
यही वजह है कि कोई भगवान को मानता है तो कोई नहीं।

वैसे बचपन से मेरे परिवार वालों ने मुझे बताया कि भगवान होता है तो मैं भी भगवान की पूजा करने लगा।
कभी-कभी मैं अपने मार्ग से भटक जाता था और भगवान की पूजा नहीं करता था।
ऐसा इसलिए होता क्योंकि कभी-कभी मैं news में पढ़ लेता था कि एक family मंदिर; भगवान की पूजा करने जा रही थी और अचानक ही रास्ते में एक बस उन्हें ठोककर चली गई।
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ये सुनकर मेरा मन विचलित हो जाता था और फिर मैं भगवान की पूजा नहीं करता था इस पर घरवाले मुझे समझाते कि वो accident इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने कहीं ना कहीं गलती की होगी।
कैसे भी मेरी family मुझे समझा-बुझाकर भगवान की पूजा करने के लिए मना लेती थी।
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एक दिन फिर ऐसा आया कि मैंने भगवान की पूजा करना छोड़ दिया और फिर से मेरी family मुझे मनाने लगी लेकिन इस बार मैंने उनकी एक ना सुनी।
क्योंकि इस बार जो accident हुआ वो किसी और के साथ नहीं बल्कि मेरे साथ ही हुआ।
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हुआ यूँ कि हम कुछ दोस्त; एक बार नवरात्रि में माता जी के मन्दिर पर; अपनी साइड में; पैदल-पैदल जा रहे थे कि अचानक से पीछे से दो शराबी(जो bike पर थे) आये और मुझे पीछे से ठोकर मार दी जिससे मेरे पैरों में कुछ चोट आ गई थी।
अगर हम सभी दोस्त चाहते तो उनकी अच्छी तरह से मरम्मत भी कर सकते थे लेकिन वो इसलिए नहीं की क्योंकि हम सभी लोग शुभ कार्य करने मंदिर जा रहे थे।
और रास्ते में ये मारपीट करना हमें शोभा नहीं देता।
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खैर, जब वापस घर आये तो दर्द कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था और उस शराबी से ज्यादा मुझे भगवान पर गुस्सा आ रही थी।
क्योंकि मैं कोई disco में नाचने नहीं जा रहा था बल्कि अच्छे काम के लिए; माता के दर्शन करने जा रहा था।
फिर मैंने decide किया कि अब बहुत हुआ मैं अब भगवान की पूजा नहीं करूँगा।
इसीलिए मैंने फिर अपनी family की बातों को भी ignore कर दिया।
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आखिर 2-4 महीने भगवान से नाराज रहने के बाद घरवालों ने मुझे फिर से समझाया कि नास्तिक ना बनो भगवान की पूजा करना जरूरी है क्योंकि इससे हमें सद्बुद्धि मिलती है और हमारे साथ बुरा नहीं होता।
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घरवालों के इतना समझाने के बाद मैंने फिर से उनकी बात मान ली और शाम को regular भगवान की पूजा करने की आदत डाली ही थी कि फिर से एक और accident...
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इस accident ने अब मुझे पूरी तरह नास्तिक बना दिया था ऐसा नास्तिक कि मैं दूसरों को भी suggest करने लग गया कि वो भगवान की पूजा ना करें वरना उनका भी accident हो जायेगा।
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अब मैं जो लिखने जा रहा हूँ उसे पढ़कर या तो आप मुझे आप पागल बोल सकते हो या फिर मुझ पर हँस भी सकते हो क्योंकि मुझे अभी तक खुद पता नहीं चला कि मैं भगवान को मानता हूँ अथवा नहीं।
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वैसे सब कुछ भुलाकर; अगर आज की बात की जाए तो मैं फिर से भगवान की पूजा करने लगा हूँ और इसके लिए मुझे अब ना तो मेरी family ने force किया है और ना ही मेरे दोस्तों ने...!!!
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अब life में कुछ भी हो जाए मैं भगवान की पूजा करना नहीं छोडूंगा और ये मेरा अटल फैसला है।
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मैं भगवान की पूजा; ना तो दुनियाँ के डर से करता हूँ और ना ही भगवान से कुछ मन्नत माँगने के लिए।
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मैं भगवान की पूजा इसलिए करता हूँ ताकि मैं हमेशा ही बुरे कर्मों से दूर रह सकूं।
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एक पुजारी, जो दिन-रात मंदिर में भगवान की पूजा करता है वो कभी किसी के साथ गलत काम नहीं कर सकता क्योंकि गलत काम करने के लिए उसे time ही नहीं मिलता है।
और जब वो किसी के साथ गलत करता है तो उस वक्त वो भगवान की पूजा नहीं कर रहा होता है।
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दो दोस्त, रास्ते में एक-दूसरे से बुरे कर्म (गालियाँ) देते हुए जा रहे थे अचानक मंदिर मिलने पर वो गालियाँ छोड़कर भगवान के हाथ जोड़ने लगे और फिर मंदिर छोड़कर फिर से गालियाँ देने में व्यस्त हो गए।
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अब यहाँ notice करने वाली बात यह है कि जब तक उन्होंने भगवान के आगे हाथ जोड़े तब तक उनकी गालियाँ बंद थीं लेकिन जैसे ही मंदिर से बाहर निकले उनकी गालियाँ फिर से start हो गईं।
अगर वो पूरे दिन मंदिर में ही बैठे रहते तो शायद वो गालियाँ नहीं देते और बुरे कामों से दूर रहते।
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(ये blog आप technic jagrukta वेबसाइट पर पढ़ रहे हैं)
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हम सभी; बुरे कामों से बचने के लिए पुजारी की तरह सारे दिन तो भगवान की पूजा नहीं कर सकते लेकिन कुछ समय तो कर सकते हैं ताकि हम उस वक्त किसी से लड़ें नहीं, किसी से झगड़ें नहीं, किसी से गालियाँ ना दें और हर तरह के बुरे कामों से दूर रहें।
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ऐसा नहीं है कि हम भगवान की पूजा करते हैं तो भगवान हमारी मनोकामना पूरी कर देगा।
या फिर हमें accident से बचा लेगा।
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मनोकामना पूरी करने के लिए तो हमें कठोर परिश्रम ही करना होगा और accident से बचने के लिए हमें अपनी रास्ता सही से चलनी होगी।
बावजूद इसके अगर; accident होता है तो उसे सिर्फ एक इत्तेफाक समझ कर भूल जाना होगा।
उसके लिए भगवान को दोषी ठहराने से कुछ नहीं होगा क्योंकि accident का मतलब ही होता है कि अकस्मात् कोई घटना हो जाना तो उसमे भला भगवान क्या कर सकता है..???
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आप भगवान की कितनी ही पूजा क्यों ना करें आपको वो exam में भी तक pass नहीं करेगा जब तक कि आप मेहनत नहीं करोगे।
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हाँ इतना जरूर है कि भगवान की पूजा करते वक्त वो हमें बुरे कर्मों से दूर अवश्य रखता है।
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यही कारण है कि मैंने बुरे कामों से दूर रहने के लिए भगवान की पूजा करने का फैसला लिया है।
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अगर आप अभी भगवान की पूजा करते हैं तो ये अच्छी बात है लेकिन नहीं करते हैं तो आदत डाल लो क्योंकि बुरे कामों से दूर रहने का यह सही रास्ता है।
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अगर आप इस blog से सहमत या असहमत हैं तो हमें अपनी comments के जरिये अवश्य बताइए।
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जय हिन्द।
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